मेरी उदास कविताओं को
जीवंत बना देती हो तुमपढ़ने के अनोखे अंदाज से
जीने की मृत इच्छा को
पल भर में बदल देती हो
कंधे पर हाथ भर रख कर
किसी नास्तिक को भी
मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ा दो
ईश्वर की भेजी एक दूत हो तुम
और मैं ख़ुद के होने की वजह ढूँढ़ता
लौह पुरुष होने का ढोंग रचता हुआ
हार जाता हूँ तुम्हारी चुम्बकीय शक्ति से
गुरुत्वाकर्षण का मुख्य केंद्र हो तुम
जो खींच लेती हो मेरी हर निराशा को
कितना कुछ है तुम्हारी बातों की पोटली में
जो हर बार जीने का कारण ढूँढ़ लाती हो
सर्द रातों में गिरी ओस की आख़िरी बूँद हूँ मैं
और मेरा भार उठाए मुलायम हरी दूब हो तुम
तुम्हारे छोड़ने भर तक बचा है अस्तित्व मेरा
दुःखों से भरा, हारा हुआ पितामह हूँ मैं
मृत्यु शैया पर लेटा
सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में
और तुम हो जो आमादा हो
पृथ्वी का अगला चक्कर रोकने पर
दुनिया में असंभव कुछ भी नही
बस इसी संभावना का संचार कर
बचा लेती हो मुझे हर बार, कितनी बार।
अमित 'मौन'
दुःखों से भरा, हारा हुआ पितामह हूँ मैं
ReplyDeleteमृत्यु शैया पर लेटा
सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में
और तुम हो जो आमादा हो
पृथ्वी का अगला चक्कर रोकने पर
महाभारत महाकाव्य के चरित्र के माध्यम से बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
साधुवाद !
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteगुरुत्वाकर्षण का मुख्य केंद्र हो तुम
ReplyDeleteजो खींच लेती हो मेरी हर निराशा को
कितना कुछ है तुम्हारी बातों की पोटली में
जो हर बार जीने का कारण ढूँढ़ लाती हो
उम्दा रचना माननीय बधाई व शुभकामनाएँ ।
सादर।
बेहद शुक्रिया आपका
Deleteसुन्दर और सार्थक सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteवाह ! अटूट विश्वास की कथा कहती बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
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