किसी अज्ञात शत्रु की तरह पीछे से वार करता है अतीत
बिल्कुल हृदयाघात
की तरह आकर लिपट जाता है
स्मृतियों के हथौड़े जब चलना शुरू करते हैं
तो दिमाग़ की नसों को लहूलुहान
कर देते हैं
कमीज़ पर लगा दाग हम जितना छुपाते हैं
वो उतना ही गाढ़ा होता जाता है
किशोरावस्था में आई मोच को
हम जवानी में नज़रअंदाज जरूर करते हैं
पर उसका दर्द बुढ़ापे में जीना दूभर कर देता है
हम अपने लिए कितना ही अलग रास्ता क्यों ना चुन लें
रास्ते में वो चौराहा जरूर आ जाता है
जहाँ पिछली रात किसी बुढ़िया ने टोटका किया होता है
कुछ हादसे नींदों के दुश्मन होते हैं
और कुछ निशान हमेशा के लिए बदन पर छपे रह जाते हैं।
अमित 'मौन'
बहुत सुन्दर और सार्थक रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteकुछ हादसे नींदों के दुश्मन होते हैं
ReplyDeleteऔर कुछ निशान हमेशा के लिए बदन पर छपे रह जाते हैं।
बेहद उम्दा रचना अमित 'मौन'जी ❗🙏❗
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर सारगर्भित अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
DeleteBEAUTIFUL
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