Tuesday, 9 February 2021

अतीत

किसी अज्ञात शत्रु की तरह पीछे से वार करता है अतीत

बिल्कुल हृदयाघात की तरह आकर लिपट जाता है
स्मृतियों के हथौड़े जब चलना शुरू करते हैं
तो दिमाग़ की नसों को लहूलुहान कर देते हैं

कमीज़ पर लगा दाग हम जितना छुपाते हैं
वो उतना ही गाढ़ा होता जाता है
किशोरावस्था में आई मोच को
हम जवानी में नज़रअंदाज जरूर करते हैं
पर उसका दर्द बुढ़ापे में जीना दूभर कर देता है

हम अपने लिए कितना ही अलग रास्ता क्यों ना चुन लें
रास्ते में वो चौराहा जरूर जाता है
जहाँ पिछली रात किसी बुढ़िया ने टोटका किया होता है

कुछ हादसे नींदों के दुश्मन होते हैं
और कुछ निशान हमेशा के लिए बदन पर छपे रह जाते हैं।

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


13 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  3. कुछ हादसे नींदों के दुश्मन होते हैं
    और कुछ निशान हमेशा के लिए बदन पर छपे रह जाते हैं।

    बेहद उम्दा रचना अमित 'मौन'जी ❗🙏❗

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  5. सुन्दर सारगर्भित अभिव्यक्ति..

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