Monday 22 February 2021

स्थिरता

कितनी ही दीवारें हैं

जिन्हें घर होने का इंतज़ार है

और मुसाफ़िर हैं कि
बस भटकते हुए दम तोड़ रहे हैं

जाने कितना ही वक़्त
खोजते हुए खर्च कर दिया
पर जो ढूँढ़ लिया
उसे संभालने का समय नही मिला

जल्द पहुँचने की ख़्वाहिश लिए
सुकून भरी छाँव छोड़ते रहे
पर कौन जाने इस लंबे सफ़र में
कोई और पेड़ मिले ना मिले

हम भागने के इतने आदी हो गए
कि रुकने को अस्थिरता समझने लगे
जबकि इस भाग-दौड़ का मक़सद
एक स्थायी पते की तलाश था

मन को इच्छाओं का ग़ुलाम बना लेना
अपने शरीर के साथ क्रूरता करना है।

अमित 'मौन'


P.C.: GOOGLE


20 comments:

  1. बहुत गहन भाव उकेरे हैं आपने।
    सादर।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  2. सच मं भागने के आदी हो गये हैं हम.

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  3. वाकई भागम भाग ज़िन्दगी के आदी हो चले हैं । अच्छी प्रस्तुति ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  4. वाकई वह स्थायी ठिकाना मिल जाए तो बात बन जाए

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  5. बहुत खूब ल‍िखा अम‍ित जी, क‍ि ...जल्द पहुँचने की ख़्वाहिश लिए
    सुकून भरी छाँव छोड़ते रहे
    पर कौन जाने इस लंबे सफ़र में
    कोई और पेड़ मिले ना मिले..वाह

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    1. जी हार्दिक धन्यवाद आपका

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  6. बहुत सुंदर रचना।

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  7. बहुत सुंदर

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    1. बेहद शुक्रिया आपका

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  8. सुंदर रचना!
    हम भागने के इतने आदी हो गए
    कि रुकने को अस्थिरता समझने लगे
    जबकि इस भाग-दौड़ का मक़सद
    एक स्थायी पते की तलाश था।
    ब्रजेंद्रनाथ

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    1. जी हार्दिक धन्यवाद आपका

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  9. हार्दिक आभार आपका

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  10. बहुत खूब अम‍ित जी,

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