इतवार की फुरसत भरी शाम, गर्मियों को धकेल कर विदा करती हुई दशहरे के बाद चलने वाली शीतल हवाएं, ऊपर ऊपर से खुश दिखते मगर एक दूसरे के लिए अजनबी लोगों की भीड़ और साथ ही इन सबकी आवाज़ों को दबाती हई जोर मारती समंदर की लहरें। किसी व्यस्त शहर में पड़ने वाला समंदर का किनारा फुरसत वाली शामों में भी कितना कुछ अपने अंदर समेटे रहता है।
इन सबके बीच मगर इनसे छुपता हुआ एक अनोखा कोना जहाँ बैठ कर मैं इस पल अलग अलग रंग के बादलों से ढका हुआ आसमान निहार रहा हूँ। यही वो जगह है जहाँ बैठे बैठे हम दोनों ने ना जाने कितनी ही शामों को रात के आँचल में छुपते हुए देखा था।
तुम अक़्सर यहाँ बैठ कर पेंटिंग्स बनाया करती थी और मुझे ना चाहते हुए भी 'वाह कितनी सुंदर बनाई है' बोलना पड़ता था। सच कहूँ तो मुझे पेंटिंग्स में जरा भी दिलचस्पी नही थी पर उन्हें बनाते हुए तुम्हारे चेहरे पर जो चमक आती थी वो मेरी आँखों को रोशन कर जाती थी। वैसे तुम्हारी एक बात जिससे मैं हमेशा ताल्लुक रखता था वो ये कि पूरे चौबीस घंटे के दिन में एक शाम ही ऐसी होती है जो सुकून देती है और इस पर ये तर्क भी अच्छा कि सुबह नया जोश देती है,दोपहर थकान देती है और रात उदासी देती है। एक शाम ही है जो सुकून देती है और उस पर भी अगर छुट्टी वाली शाम हो तो सोने पे सुहागा।
तुम्हें शामें कितनी ज्यादा पसंद थी ये मैं इस बात से ही जान गया था जब तुमने कहा था कि अगर कभी प्रलय आए और दुनिया ख़त्म होने लगे तो वो शाम का समय हो ताकि हर कोई रंग बदलते हुए बादलों का अनोखा मंज़र देखते हुए ऑंखें बंद करे। सच बताऊँ अगर मुझे उस वक़्त जरा भी अंदाज़ा होता कि ये प्रलय तुम्हे लेने आएगी और ये दुनिया मेरे लिए ख़त्म होगी तो मैं तुम्हारे होंठों को उसी वक्त ये बात पूरी करने से रोक लेता। पर ना मैं तुम्हारी बात पूरी होने से रोक पाया और ना ही तुम्हे जाने से रोक पाया।
मुझे अक़्सर अपने किए हुए एक वादे पर अफ़सोस रहता है जो मैंने तुमसे किया था। मैंने ये वादा तो कर लिया कि मैं कभी भी किसी के सामने उदास नही रहूँगा क्योंकि तुम्हारे मुताबिक़ मेरा उदास चेहरा बिल्कुल अच्छा नही लगता। मुझे क्या मालूम था कि अब उदासी मेरे जीवन में हमेशा के लिए शामिल होने वाली है और फ़िर भी मुझे उसे सबसे छुपा कर रखना पड़ेगा। पर देखो यहाँ कोई नही है और यहाँ मैं उदास होने के साथ साथ जी भर कर रो भी सकता हूँ। मैंने अक्सर समंदर के किनारे लोगों को उदास बैठे देखा है और मुझे लगता है कि उनके आँसुओं के नमक से ही इस समंदर का पानी खारा हुआ है।
तुम्हे पूरा यकीन था कि अच्छे लोग जब हमें छोड़ कर जाते हैं तो वो तारे बन जाते हैं और तुम्हारे उसी यकीन को तुम्हारा इशारा मानकर मैं अब भी शाम को रात होते हुए देखता हूँ। पर अब आसमान का रंग बदलते हुए नही बल्कि तुम्हे तारा बनकर जगमगाते हुए देखता हूँ। अब जब भी किन्ही दो तारों को एक साथ देखता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखें मुझे ऊपर से देख रही हैं और मैं अनायास ही शरमा जाता हूँ। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अच्छा दिखूं वरना कहीं तुम्हे इस बात का दुःख ना हो कि तुम्हारे बिना मैंने अपना क्या हाल बना रखा है।
और जब तुम अपनी रोशनी को थोड़ा और तेज करती हो मैं समझ जाता हूँ कि आज तुम भी मुझे देख कर ख़ुश हो। वैसे तारा बनकर तुमने बहुत अच्छा किया। अब थोड़ी दूर से ही सही कम से कम हम एक दूसरे को देख तो सकते हैं।
फ़िर मिलेंगे के वादे के साथ अब मैं चलता हूँ और सदा चमकने के वादे के साथ तुम भी मुझे विदा करो।
हे समंदर तुम्हारे खारेपन को बढ़ाने के लिए मुझे क्षमा करना।
अमित 'मौन'
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-12-2021 ) को 'चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस' (चर्चा अंक 4291) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी हार्दिक आभार आपका
Deleteplsz read me also
Deleteदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना,अमित भाई।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletegood article nice to read u
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