यूँ तो रिश्तों की कोई उम्र नही होती। कई बार ये बस कुछ सालों के मेहमान होते हैं और कई बार ताउम्र साथ बने रहते हैं।
कुछ रिश्ते मरहम की तरह होते हैं जो किसी और से मिले घावों को ठीक करने का काम करते हैं तो कुछ रिश्ते हमारे लिए छाँव का काम करते हैं जिनके तले बैठ कर हम अपनी मानसिक थकान दूर करते हैं।
कुछ रिश्ते हमें एक सीमित दायरे में बाँध देते हैं और कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं जिनके बाहर हमें कुछ और दिखता ही नही। कुछ को हम चाहते हुए भी नही छोड़ सकते और कुछ ना चाहते हुए भी साथ छोड़ जाते हैं।
हम जन्म लेते ही ख़ुद को ढेरों रिश्तों के बीच घिरा हुआ पाते हैं पर आखिरकार ये निर्णय हमे ख़ुद ही लेना होता है कि मरने से पहले हम किन रिश्तों के साथ जीना चाहते हैं।
जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होने चाहिए जिनका साथ पाकर हम पूर्ण हो सकें और जिनके ना होने का ख़ालीपन कोई और ना भर सके।
अमित 'मौन'