लड़के अक़्सर लापरवाह होते हैं, उन्हें फ़र्क नही पड़ता समाज के किसी नियम-कानून से..उनके लिए समाज उनका सबसे बड़ा पक्षधर है...वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस करते हैं....
मगर प्यार में पड़े हुए लड़के समझदार हो जाते हैं, उन्हें ज्ञान हो जाता है समाज में फैली हर बुराई का..वो समाज में फैली उस बुराई को दूर करना चाहते हैं जिसका वो हिस्सा हैं....वो ढाल बन कर सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं अपनी प्रेमिका को....वो चिंताग्रस्त होकर असुरक्षित महसूस करने लगते हैं.....
लड़कियाँ अक़्सर व्यवस्थित होती हैं, उन्हें अच्छी तरह पता होता है समाज के बनाए कायदों का..वो क़ायदे जो उसके लिए बेड़ियाँ तैयार करते हैं....वो ख़ुद को असुरक्षित महसूस करती हैं....
मगर प्यार में पड़ी लड़कियाँ अकस्मात ही भोली हो जाती हैं, वो दुनिया को देखती हैं प्रेम के चश्मे से...जहाँ से हर व्यक्ति और वस्तु में सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही नज़र आता है..वो प्रेमी की बाहों में कैद होकर ही ख़ुद को रिहा समझती है....वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस करती हैं....
प्रेम दोनों में बदलाव लाता है...
हमें अगर समाज में बदलाव लाना है तो हमें प्रेम करना होगा...
अमित 'मौन'
मगर प्यार में पड़े हुए लड़के समझदार हो जाते हैं, उन्हें ज्ञान हो जाता है समाज में फैली हर बुराई का..वो समाज में फैली उस बुराई को दूर करना चाहते हैं जिसका वो हिस्सा हैं....वो ढाल बन कर सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं अपनी प्रेमिका को....वो चिंताग्रस्त होकर असुरक्षित महसूस करने लगते हैं.....
लड़कियाँ अक़्सर व्यवस्थित होती हैं, उन्हें अच्छी तरह पता होता है समाज के बनाए कायदों का..वो क़ायदे जो उसके लिए बेड़ियाँ तैयार करते हैं....वो ख़ुद को असुरक्षित महसूस करती हैं....
मगर प्यार में पड़ी लड़कियाँ अकस्मात ही भोली हो जाती हैं, वो दुनिया को देखती हैं प्रेम के चश्मे से...जहाँ से हर व्यक्ति और वस्तु में सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही नज़र आता है..वो प्रेमी की बाहों में कैद होकर ही ख़ुद को रिहा समझती है....वो ख़ुद को सुरक्षित महसूस करती हैं....
प्रेम दोनों में बदलाव लाता है...
हमें अगर समाज में बदलाव लाना है तो हमें प्रेम करना होगा...
अमित 'मौन'
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