यूँ ही कल झाड़ पोंछ में ज़हन की
वक़्त की दराज़ से निकल आये
कुछ ख़्याल पुराने
जो कहने थे उनसे
जो मौजूद नही थे
सुनने के लिए....
कुछ ख़त
जो लिखे गए थे
उनकी याद में
जिनका पता मालूम न था...
वो बातें
जिनके जवाब के इंतज़ार में
एक उम्र गुजरी है तन्हाई में...
आज भी संभाले रखी है
वो गुफ़्तगू की ख़्वाहिश
जो करनी थी उनसे
किसी चाँदनी रात में
खुले आसमां के नीचे
जब तारों की टिमटिमाती रोशनी
लबों पे यूँ पड़ती मानों
बातों से गिरते हों मोती कई....
और समेट लेता मैं
उस ख़ज़ाने को उम्र भर के लिए
और देखा करता हर रोज़
मोतियों में तुम्हारे अक़्स को...
ख़ैर वो मोती ना सही
पर वो ख़्याल अभी भी सहेज रखें हैं
क्योंकि ज़िंदगी बाकी है अभी
और बाकी है एक उम्मीद...
अमित 'मौन'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-08-2019) को "सुख की भोर" (चर्चा अंक- 3433) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका
Deleteउमीदों के सहारे ... क्योंकि जिंदगी बाकी है अभी ...
ReplyDeleteगहरा लाजवाब ख्वाब ...
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर व सार्थक अभिव्यक्ति, बधाई
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही शानदार उम्मीद ।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुती।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबेहतरीन 👌
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteकुछ ख़त
ReplyDeleteजो लिखे गए थे
उनकी याद में
जिनका पता मालूम न था...
वाह!!!!
क्योंकि ज़िंदगी बाकी है अभी
और बाकी है एक उम्मीद...
लाजवाब सृजन
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत ही सुंदरता से मन के भावों को व्यक्त किया है बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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